अलसी के फायदे व गुण – Alsi Benefits In Hindi
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भारत के कुछ प्रांतों में अलसी का तेल अभी भी खाद्य तेलों के रूप में प्रचलित है। धीरे-धीरे हम अलसी को भूलते जा रहे हैं, लेकिन अलसी पर नए शोध अध्ययनों ने दुनिया के सामने बड़े चमत्कारी प्रभाव और चौंकाने वाले तथ्य लाए हैं। आज पूरी दुनिया में इसकी तारीफ हो रही है. विशिष्ट चिकित्सकों की सलाह पर अलसी के चमत्कारों की महिमा भी गाई जा रही है।
अलसी के गुण
अलसी एक प्रकार का तिलहन है। इसके बीज सुनहरे रंग के और बहुत चिकने होते हैं। इसका तेल आज भी फर्नीचर के वार्निश में प्रयोग किया जाता है।
आयुर्वेदिक मत के अनुसार अलसी ज्वरनाशक, पित्ताशय और कफ-निरोधी भी है। मूत्रवर्धक प्रभाव और अल्सरेशन, रोगाणुरोधी, स्तनपान कराने वाली, मासिक धर्म नियामक, जिल्द की सूजन, सूजन और एनाल्जेसिक, अड़चन। लीवर, पेट और आंतों की सूजन को दूर करता है।
बवासीर और पेट के विकारों को दूर करता है। गोनोरिया और गुर्दे की पथरी को दूर करता है। अलसी में विटामिन बी और खनिज लवण जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, तांबा, लोहा, जस्ता, पोटेशियम आदि होते हैं। इसके तेल में 36 से 50 प्रतिशत ओमेगा -3 फैटी एसिड होता है।
अलसी का प्रयोग और विभिन्न रोगों में उबालना – अलसी में अल्सरेटिव गुण होते हैं। अलसी को पीसकर थोडा़ सा पानी और थोड़ा सा दूध एक गांठ में डालकर उबाल लें और उसमें 1 ग्राम शुद्ध हल्दी मिलाएं।
इन सभी को एक साथ आग पर पका लें, फिर तवे की हरी पत्तियों पर पके हुए मिश्रण का गाढ़ा पेस्ट लगाकर इसे सहन करने के लिए गर्म होने के लिए रख दें, फिर इसे एक गांठ या उबाल लें।
दर्द, जलन, चुभन से आराम मिलेगा और इसे पांच से छह बार उबालने या पुल्टिस बांधने पर बैठ जाएगा। कुछ दिनों के लिए छोड़ देने पर इस ठंढी पुल्टिस को बांधने से घाव जल्दी ठीक हो जाता है।
त्वचा का जलना –
आग या गर्म पदार्थों के संपर्क में आने के बाद जब अलसी के तेल का शुद्ध छिलका चूने का साफ साफ पानी मिलाकर जला दिया जाता है या झुलस जाता है तो ढेर सारा गोंद लेकर सफेद मलहम बन जाता है। इसे लगाने से दर्द, शीतदंश का अहसास और घाव भरने से आराम मिलता है।
बेहोशी की अवस्था में –
अलसी के तेल की 2-3 बूंद नाक गुहा में डालने से बेहोशी समाप्त हो जाती है। हैजे में 3 ग्राम अलसी को 50 ग्राम उबलते पानी में पीसकर मिला लें। जब यह पानी ठंडा हो जाए तो इसे छानकर आधे घंटे में तीन खुराक दें। इस प्रक्रिया को दिन में कई बार दोहराएं। इससे लाभ होता है ।
अलसी के 50 ग्राम बीजों को तवे पर पीसकर पुरानी सर्दी में पीस लें। इसमें बराबर मात्रा में चीनी पीसकर दोनों को आपस में मिलाकर एक शीशी में भर लें; यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में गुनगुने पानी के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से कफ निकल जाता है।
अलसी में कफ को बेअसर करने वाले गुण होते हैं, कफ के सारे विकार को दूर करता है। फेफड़े स्वस्थ होते हैं और सर्दी से मुक्ति मिलती है।
क्षय रोग में
25 ग्राम अलसी को पीसकर 250 ग्राम पानी में (शाम के समय) भिगो दें। सुबह छान कर छान लें और आधा नींबू निचोड़ कर नींबू का रस मिलाकर खाएं। यह नियमित प्रयोग क्षय रोग में लाभकारी होता है।
दमा (अस्थमा में) –
अलसी के 6 ग्राम को पीसकर 250 ग्राम पानी में उबाल लें, आधा पानी रह जाने पर 2 चम्मच शहद को चाय की तरह मिलाकर चाय की तरह गर्मागर्म लें। खांसी मिटती है।
सुजाक एवं पेशाब की जलन में –
अलसी के बीजों को पीसकर बराबर मात्रा में मिसरी मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार सेवन कराने से लाभ होता है । अलसी के तेल की 3-4 बूंद मूनेंद्रिय में डालने से लाभ होता है । पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए । गरम प्रकृति के खाद्य एवं गरम मसालों से बचना चाहिए ।
रीढ़ की हड्डी में दरद –
अलसी तेल में सोंठ का चूर्ण डालकर पकाएँ और छानकर ठंढा कर तेल को शीशी में रखें । इस तेल से रीढ़ की नियमित मालिश करने से लाभ होता है ।
गुदा के घाव पर –
अलसी को जलाकर , भस्म बनाकर गुदा के घाव पर बुरकने दें ; घाव शीघ्रता से भरता है । माँ के दूध में कमी – शिशु को स्तनपान कराने वाली माताओं को दूध में कमी होने पर 30 ग्राम अलसी को भूनकर , पीसकर , आटा में मिलाकर रोटी बनाकर खिलाने से माँ का दूध बढ़ने लगता है ।
कानों की सूजन में –
अलसी के तेल में प्याज का रस बराबर मात्रा में डालकर पकाएँ । जब तेल शेष रहे , तब उतारकर ठंढा करके शीशी में सुरक्षित रखें । जब आवश्यकता पड़े थोड़ा – सा तेल हलका गरम करके रूई के सहारे कान में 1-2 बूंद टपका दें । ( स्मरण रहे तेल सहने योग्य हलका गरम रहे ) इससे कान के दरद एवं सूजन में लाभ होता है ।
अलसी के अनेक फायदे
रोग अनेक – नुसखा एक – गठिया , मधुमेह , हृदय रोग , उच्च रक्तचाप , कब्ज , दमा , भगंदर , लिवर की सूजन , हार्ट ब्लाकेज , आँतों की सूजन , कैंसर , प्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़ना , त्वचा के रोग , दाद , खाज , खुजली , एग्जिमा , मुँहासे , झाँई , नाक – कान के संक्रमण आदि रोगों में उपयोगी ।
उपरोक्त रोगों में 80 प्रतिशत से अधिक लाभ होने के जर्मनी में हुए इन दिनों शोध – अध्ययनों के आधार पर यह साधारण – सा सरल प्रयोग जन – जन के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है । विधि -30 ग्राम अलसी को बिना तेल डाले कढ़ाई में हलका सेक लें और पीसकर , आटे में मिलाकर , रोटी बनाकर सेवन करें ।
नियमित रूप से यह क्रम बनाना होगा । ( अलसी को प्रतिदिन भूनकर प्रतिदिन पीसना चाहिए । ) अलसी को पीसकर सब्जी या दही तथा पनीर आदि में मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं ।
अलसी के चमत्कारी प्रभाव के कारण अलसी में एक पौष्टिक तत्त्व लिगनेन होता है , जिसकी अन्य खाद्य पदार्थों से सैकड़ों गुना अधिक मात्रा अलसी में पाई जाती है । यह लिगनेन नामक तत्त्व एंटी बैक्टीरियल , एंटीवायरल , एंटी फंगल तथा एंटी कैंसर होता है ।
अलसी प्रोस्टेट , बच्चादानी , स्तन , आँत और त्वचा के कैंसर में बहुत उपयोगी । अलसी के चमत्कारी प्रभाव को बढ़ाने वाला दूसरा बड़ा तत्त्व ओमेगा का पर्याप्त मात्रा में होना है । ओमेगा आँख और मस्तिष्क के लिए तथा स्नायुसंस्थान ( नर्वस सिस्टम ) के सुसंचालन के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है । स्मरणशक्ति के विकास के लिए भी अलसी गुणकारी होती है । ओमेगा रोग प्रतिरोधक एवं जीवनीशक्ति संवर्द्धक है ।
नेत्र ज्योति बढ़ाने का गुण भी है । ओमेगा अलसी के अतिरिक्त बादाम एवं अखरोट आदि में भी होता है । ओमेगा – की कमी से मधुमेह , उच्च रक्तचाप , संधिवात , गठिया , मानसिक अवसाद , मोटापा , कैंसर आदि रोगों की शुरुआत होती है । ओमेगा की कमी से सूजन , जलन पैदा होती है ।
शरीर में ओमेगा की भी आवश्यकता होती है , परंतु ओमेगा -6 की अधिकता उपरोक्त रोगों को बढ़ाती है ।
अमेरिका के एक रिसर्च में पाया गया है कि अलसी में 27 से ज्यादा कैंसररोधी तत्त्व होते हैं । अलसी को कब्ज – निवारण के एक इसबगोल की भूसी से अधिक प्रभावकारी पाया गया है । 30 से 50 ग्राम अलसी का नित्य सेवन करके ओमेगा -3 की पूर्ति की जा सकती है ।
अलसी शरीर के ताप को संतुलित बनाए रखती है । गरमी में भी शरीर में शीतलता बनाए रखती है । मन को शांति एवं प्रसन्नता देती है । अलसी लाभकारी कोलेस्ट्रॉल ( H.D.L ) को बढ़ाती है तथा हानिकारक ( L.D.L ) कोलेस्ट्रॉल को कम करती है , जिससे हृदय की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है । हार्टअटैक जैसे रोगों से बचाती है । इसलिए अलसी को स्टारफूड कहा जाता है ।
अंतिम शब्द
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