बिहार में वन और वनस्पति – Bihar Gk In Hindi

बिहार में वन और वनस्पति Bihar Gk In Hindi

बिहार में चूँकि वर्ष के तीन चार महीने में ही 80 % से अधिक वर्षा हो जाती है , जबकि वर्ष की शेष आठ नौ महीने की अवधि में वर्षा अपेक्षाकृत नगण्य होती है , इसलिए यहाँ की प्राकृतिक वनस्पति में पर्णपाती यानी पतझड़ किस्म के वन अधिक पाये जाते हैं ।

– इस प्रकार के वनों के वृक्ष ग्रीष्म काल के आरंभ होते ही अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं , जिससे वे गर्मी की शुष्कता को झेलने में समर्थ हो जाते हैं ।

वर्तमान बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के मात्र 6.65 % भाग पर ( भारत , 2013 के अनुसार ) अधिसूचित बन पाये जाते हैं , जबकि झारखंड राज्य के निर्माण के पूर्व यहाँ ( अविभाजित बिहार में ) 16.87 % भाग पर वन पाये जाते थे । चंपारण और पूर्णिया जिलों को छोड़कर गंगा के उत्तरी मैदान की प्राकृतिक वनस्पति अकृषि योग्य भूमि , झीलों और ताल क्षेत्र में छिटपुट रूप से उपलब्ध होने वाले बबूल , शीशम और बाँस के रूप में उपलब्ध है । राज्य में गंगा के दक्षिणी मैदान में राजगीर आदि पहाड़ी क्षेत्रों में सीमित वन क्षेत्र उपलब्ध हैं ।

> बिहार में सामान्यतया मानसूनी वन मिलते हैं । परन्तु इसके तराई क्षेत्र में उपोष्ण पर्णपाती ( पतझड़ ) वन भी मिलते हैं ।

> भारतीय वन सर्वेक्षण ( FSI ) द्वारा फरवरी , 2012 में जारी भारत में वन स्थित रिपोर्ट 2011 के अनुसार बिहार में 41 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बढ़ा है ।

> बिहार में वर्ष 2009 में जहाँ 6804 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र था , वहीं वर्ष 2011 में वन क्षेत्र बढ़कर 6845 वर्ग किमी . हो गया ।

> ये वन मुख्यतः पश्चिमी चम्पारण , मुंगेर , बांका , जमुई , नवादा , नालंदा , गया , रोहतास , कैमूर , औरंगाबाद आदि जिलों में हैं , जहाँ लगभग 3,700 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है । शेष जिलों में वन अवक्रमित हैं ।

> यहाँ वनों से केन्दु पत्तियाँ , लाख , गोंद , साल के बीज और इमारती लकड़ी मिलती है । राज्य वन विकास निगम महुआ , करंज और कुसुम के बीज एकत्रित करता है । राज्य में 12 आरक्षित वन हैं ।

> प्रदेश में मानूसनी पर्णपाती वन पाये जाते हैं , जिन्हें वर्षा की अधिकता एवं न्यूनता के आधार पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है 1. आर्द्र पर्णपाती वन और 2. शुष्क पर्णपाती वन । 1. आई पर्णपाती वन

> ये वन विशेष रूप से किशनगंज जिले के उत्तर – पूर्वी भाग में , हिमालय की तराई के दलदली भाग और सोमेश्वर की पहाड़ियों पर मिलते हैं । इस क्षेत्र में 120 सेमी से अधिक वर्षा होती है ।

अत्यंत धनी वनस्पति वाले ऐसे वनों में मुख्यतः साल के वृक्ष उगते हैं , जो गर्मी के मौसम से पूर्व अपने पत्ते गिरा देते हैं , परंतु वर्षा के पूर्व इनमें नयी पत्तियाँ आ जाती हैं और ये वन पुनः हरे भरे हो जाते हैं ।

– ऐसे वनों में साल वृक्षों के अतिरिक्त सेमल , चंपा , अशोक , केन , घउरा , आम , जामुन , करंज आदि के वृक्ष भी मिलते हैं ।

शुष्क पर्णपाती वन – इस प्रकार के वन / वनस्पति 120 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं । – ये वन घने नहीं होते , अतः इनमें वृक्षों के बीच फासला अधिक होने के कारण धूप जमीन पर आसानी से पहुँचती है । ऐसे वन में वृक्षों की ऊँचाई कम होती है तथा पतझड़ की अवधि लंबी होती है ।

ऐसे वनस्पति प्रदेश कैमूर की पहाड़ी तथा छोटानागपुर की उत्तरी ढलानों और छिटपुट पहाड़ियों पर मिलते हैं । साथ ही , रक्सौल , अररिया और पूर्णिया जिले में कुछ विरल वन पाये जाते हैं ।

– इन वनों में मध्य कोटि के साल , बांस , खैर , पलाश , अमलतास , शीशम , महुआ तथा केन के साथ साथ आम व जामुन के वृक्ष और बेर की झाड़ियाँ भी मिलती हैं । उत्तरी उप – हिमालय के तराई वन

→ उत्तरी उपहिमालयी प्रदेश में तराई वनों का बाहुल्य है । नेपाल की सीमा से लगे बिहार के तराई क्षेत्र में आर्द्र पर्णपाती ( उपोष्ण पर्णपाती ) वन पाये जाते हैं ।

> उच्च भूमि और पहाड़ी ढालों पर , जहाँ वर्षा का औसत 160 सेमी ० से अधिक रहता है साल , शीशम , सेमल , तून और खैर के सघन वन पाये जाते हैं ।

> पश्चिमी चंपारण जिले में सोमेश्वर तथा दून की पर्वत श्रेणियों की ढालों पर तथा पूर्णिया और अररिया जिले के उत्तरी तराई क्षेत्र में यह वन पाया जाता है ।

> अधिक नमी वाली दलदली और निम्न भूमि वाले क्षेत्रों में ऊँची घासों की बहुलता है ।

> तराई क्षेत्रों में सवाई घास तथा नरकट और झाउ की घनी झाड़ियाँ पायी जाती हैं ।

> सहरसा और पूर्णिया के उत्तरी सीमान्त क्षेत्रों में साल – वनों की पट्टी विस्तृत है ।