Chanakya लगभग दो हजार वर्ष पूर्व भारत के इतिहास को जिस बालक ने एक स्वर्णिम मोड़ दिया , वही बालक बड़ा होकर चाणक्य बना । उसका असली नाम था विष्णुगुप्त । उसकी कूटनीतिक विलक्षणता की वजह से लोग उसे कौटिल्य भी कहते थे ।
यह घटना तब की है , जब विश्व के मानचित्र पर कुछ देशों का कहीं कोई अता पता नहीं था , लेकिन भारत की सभ्यता और संस्कृति अपने पूर्ण यौवन पर थी । धर्म , दर्शन और अध्यात्म की ही नहीं , राजनीति तथा अर्थशास्त्र जैसे विषयों की शिक्षा लेने के लिए भी विदेशों से विद्यार्थी भारत भूमि पर आया करते थे । यहां तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालय थे ।
चाणक्य के बारे में –
आचार्य चाणक्य तक्षशिला में राजनीति तथा अर्थशास्त्र के आचार्य थे । भारत की सीमाएं उस समय अफगानिस्तान से लेकर बर्मा ( म्यांमार ) तक तथा कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक फैली हुई थीं । उस समय भारत सोने की चिड़िया था । विदेशी आक्रांताओं को भारत की समृद्धि खटक रही थी लेकिन उनमें हिम्मत नहीं थी कि वे हिंदुस्तान के रणबाकुंरों का सामना कर सकें ।
अंततः उन्होंने दान और भेद की नीति का सहारा लेकर मगध के शासक धर्मनंद की कमियों को पहचान लिया और उसे अपने पाश में भी कस लिया था । वर्तमान के पटना तथा तत्कालीन पाटलिपुत्र के आसपास फैला पूर्व – उत्तर की सीमाओं को छूता हुआ एक विशाल और शक्तिशाली वैभव संपन्न राज्य था – मगध । मगध के सिंहासन पर आसीन धर्मनंद सुरा – सुंदरी में इतना डूब चुका था कि उसे राजकार्यों को देखने की फुरसत ही नहीं थी । वह अपनी मौजमस्ती के लिए प्रजा पर अत्याचार करता ।
जो भी आवाज उठाता , उसे कुचल दिया जाता । चणक को भी जनहित के लिए उठाई गई आवाज की सजा मिली थी । उस महान आचार्य को मौत के घाट उतार दिया गया था । एक – एक करके हुई हृदय विदारक घटनाएं चणक पुत्र चाणक्य के हृदय में फांस की तरह धंसी हुई थीं । एक दिन जब राजसभा में समूचे आर्यावर्त की स्थिति का विवेचन करते हुए चाणक्य ने मगधराज धर्मनंद को उनका कर्तव्य याद दिलाया तो वह झुंझला उठा । उसने चाणक्य को दरबार से धक्के मारकर निकाल फेंकने का आदेश दिया ।
सैनिकों के चाणक्य को धक्के मारकर दरबार से निकालने की कोशिश के बीच चाणक्य की शिखा खुल गई । यह चाणक्य का ही नहीं , देश की उस आवाज का भी अपमान था , जो अपने राजा के सामने अंधकार में विलीन होते अपने भविष्य को बचाने की गुहार कर रही थी ।
उसी समय चाणक्य ने प्रतिज्ञा कर ली – ‘ अब यह शिखा तभी बंधेगी , जब नंदवंश का समूल नाश हो जाएगा । ‘ चाणक्य ने अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए चंद्रगुप्त को चुना । चंद्रगुप्त में छिपी संभावनाओं को चाणक्य ने एक – एक करके तराशा । सोचे हुए कार्य को मूर्त रूप देना चाणक्य के लिए आसान नहीं था । मकदूनियां के छोटे से प्रदेश से ‘ सिकंदर ‘ नामक आंधी की गर्द भारत की सीमाओं पर छाने लगी थी । कंधार के राजकुमार आम्भी ने सिकंदर से गुप्त संधि कर ली थी ।
पर्वतेश्वर ( पोरस ) ने सिकंदर की सेनाओं का डटकर सामना किया , लेकिन सिकंदर की रणनीति ने पांसा पलट दिया । सिकंदर की ओर से हुई बाणवर्षा से घबराई पोरस की जुझारू गजसेना ने अपनी ही सेना को रौंदना शुरू कर दिया । पोरस की हार हुई और उसे बंदी बना लिया गया । सिकंदर द्वारा यह पूछने पर कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाए , पोरस ने निर्भीक होकर कहा कि जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है । सिकंदर ने पोरस को उसकी वीरता से प्रसन्न होकर छोड़ भी दिया ।
इस पराजय के बाद आचार्य चाणक्य की देखरेख में चंद्रगुप्त अपनी सेना को संगठित करने , उसे तैयार करने और युद्ध की रणनीति बनाने में पूरी तरह से लग गया । भारी – भरकम शस्त्रों , शिरस्त्राणों और कवचों आदि की जगह हल्कै , परंतु मजबूत हथियारों ने ली ।
शारीरिक शक्ति के साथ ही बुद्धि – चातुर्य का भी प्रयोग किया गया । चाणक्य की कूटनीति ने इस स्थिति में अमोघ ब्रह्मास्त्र का काम किया । कौटिल्य ने साम , दान , दंड एवं भेद – चारों नीतियों का प्रयोग किया और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया । नंदवंश का नाश हुआ ।
चंद्रगुप्त ने मगध की बागडोर संभाली । सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस की बेटी हेलन का चंद्रगुप्त के साथ विवाह हुआ । धर्मनंद का प्रधान अमात्य ‘ राक्षस ‘ चंद्रगुप्त का महाअमात्य बना । एक बार फिर से भारत बिखरते – बिखरते बच गया । सिकंदर नाम की आंधी शांत होकर वापस अपने देश चली गई ।
भारत की गरिमा विश्व के सामने फिर से निखरकर सामने आई । और चाणक्य ? उसने निर्जन एकांत में राजनीति के पूर्व ग्रंथों का अवगाहन कर उसमें अपने व्यक्तिगत अनुभवों का पुट दिया और अर्थशास्त्र पर एक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा । ‘ कौटिल्य अर्थशास्त्र ‘ नामक यह ग्रंथ राजा , राजकर्मियों तथा प्रजा के संबंधों और राज्य – व्यवस्था के संदर्भ में अनुकरणीय व्यवस्था देता है । कुछ विद्वानों ने चाणक्य की तुलना मैकियाविली से की है लेकिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं . जवाहरलाल नेहरू इस बात से सहमत नहीं थे । उनकी दृष्टि में चाणक्य की महानता के मैकियाविली सामने काफी अदने हैं ।
चाणक्य नीति – Chankya Niti
चाणक्य एक महान अर्थशास्त्री , राजनीति के वेत्ता तथा कूटनीतिज्ञ होते हुए भी महात्मा थे । वे सभी प्रकार की भौतिक उपाधियों से परे थे । इसी कारण ‘ कामंदकीय नीतिसार ‘ में विष्णुगुप्त के लिए ये पंक्तियां लिखी गईं
नीतिशास्त्रामृतं धीमानर्थशास्त्र महोदधेः समुदभ्रे नमस्तस्मै विष्णुगुप्ताय वेधसे ।। ‘
जिसने अर्थशास्त्र रूपी महासमुद्र से नीतिशास्त्र रूपी अमृत का दोहन किया , उस महा बुद्धिमान आचार्य विष्णुगुप्त को मेरा नमन है ।
‘ जनकल्याण के लिए जो भी जहां से मिला , उसे चाणक्य ने लिया और उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट की । वे अपने ग्रंथ का शुभारंभ करते हुए शुक्राचार्य और बृहस्पति दोनों को नमन करते हैं । दोनों गुरु हैं । दोनों की अपनी – अपनी विशिष्ट धाराएं हैं । अपने प्रतिज्ञा वाक्य में वे कहते हैं पृथिव्या लाभे पालने च यावन्तार्थ शास्त्राणि पूर्वाचार्यैः प्रस्थापितानि संहृत्यैकमिदमर्थशास्त्रं कृतम् ।
पृथ्वी की प्राप्ति और उसकी रक्षा के लिए पुरातन आचार्यों ने जिन अर्थशास्त्रविषयक ग्रंथों का निर्माण किया , उन सभी का सार – संकलन कर इस अर्थशास्त्र की रचना की गई है । ‘ चाणक्य नीति ‘ में नीतिसार का निचोड़ है । इसका संकेत आचार्य ने प्रारंभिक श्लोकों में ही कर दिया है ।
ऐसा नहीं है कि चाणक्य नीति पर इससे पहले काम न हुआ हो । इसके अनेक अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं । यह पुस्तक उनसे अलग इस मायने में है कि इसमें मूल श्लोक के अर्थ को समझाते हुए उसमें छिपे रहस्यों की ओर भी संकेत करने का प्रयास किया गया है ।
ऐसा करने के पीछे उद्देश्य है कि पाठक उन निर्दिष्ट सूत्रों को पकड़कर कथ्य की गुत्थियां अपने ढंग से खोलें । इसमें इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि भाषा – शैली ऐसी हो , ताकि साधारण व्यक्ति भी इस ग्रंथ का लाभ उठा सकें । पुस्तक के अंत में दी गई फलश्रुति संकेत करती है कि विवेकवान् इस ग्रंथ को अवश्य पढ़े , यथा अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः । धर्मोपदेशविख्यातं कार्याकार्यं शुभाशुभम् ।।
इस शास्त्र को विधिपूर्वक अध्ययन करने के बाद व्यक्ति भलीभांति जान लेता है कि शास्त्रों में किसे करने योग्य कहा जाता है और किसका निषेध है , क्या शुभ है और क्या अशुभ ? यहां पाठकों को एक बात विशेष रूप से समझ लेनी चाहिए कि इस ग्रंथ में कुछ ऐसी मान्यताओं का भी जिक्र किया गया है , जो बदलते परिवेश के साथ या तो बदल रही हैं या फिर उन्होंने अपना अस्तित्व खो दिया है ।
ग्रंथ की प्रामाणिकता को बनाए रखने के लिए उसके मूलरूप में किसी भी तरह की छेड़खानी करना नैतिक दृष्टि से ठीक नहीं है । मूल को यथारूप देने का अर्थ यह कतई नहीं है कि लेखक या प्रकाशक इन विचारों या मान्यताओं से सहमति रखते हैं । इसलिए पाठकों को सही संदर्भो में ही इस ग्रंथ के कथ्य को समझने की कोशिश करनी चाहिए ।
Chanakya Niti In Hindi
* कृते प्रतिकृतं कुर्याद् हिंसने प्रतिहिंसनम् । तत्र दोषो न पतति दुष्टे दुष्टं समाचरेत् ।।
जो जैसा करे , उससे वैसा ही बरतें । कृतज्ञ के प्रति कृतज्ञता भरा , हिंसक से हिंसा युक्त और दुष्टता का व्यवहार करने पर किसी प्रकार का पाप ( पातक ) नहीं होता ।
* सिकंदर द्वारा पोरस को मुक्त करना उन राजाओं के गाल पर करारा तमाचा था , जिन्होंने पर्वतेश्वर का साथ नहीं दिया था ।
* नीतिशास्त्र में कही गई बातों की व्याख्या एकांगी नहीं होनी चाहिए । इसके लिए जरूरी है कि व्याख्याता को लोक और शास्त्र दोनों का ज्ञान हो । ‘ लोक ‘ में तत्कालीन समाज का स्वरूप आता है , जबकि शास्त्र का अर्थ है — प्रयुक्त शब्दार्थ अर्थात् प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावली का अर्थ स्पष्ट होना ।
संपूर्ण चाणक्य नीति हिंदी में – Chanakya Niti In Hindi
चाणक्य नीति प्रथम अध्याय Chanakya Niti In Hindi
चाणक्य नीति द्वितीय अध्याय Chanakya Niti In Hindi
चाणक्य नीति तीसरा अध्याय Chankya Niti In Hindi
चाणक्य नीति चौथा अध्याय Chankya Niti In Hindi
चाणक्य नीति पांचवा अध्याय chankya niti hindi me
चाणक्य नीति छठवा अध्याय chanakya niti hindi mein padhne ke liye
चाणक्य नीति सातवा अध्याय , chanakya niti for motivation in hindi
चाणक्य नीति आठवाँ अध्याय , Chanakya Niti In Hindi
चाणक्य नीति नवा अध्याय , Chanakya Niti In Hindi
चाणक्य नीति दशवा अध्याय , Chanakya Niti In Hindi
चाणक्य नीति ग्यारहवा अध्याय , Chanakya Niti chapter In Hindi
चाणक्य नीति बारहवा अध्याय , Chanakya Niti In Hindi
चाणक्य नीति तेरहवाँ अध्याय , Chanakya Niti In Hindi
चाणक्य नीति चौदहवाँ अध्याय Chanakya Niti In Hindi