Guatam Budhha Motivational Story In Hindi – गुस्सा करने के नुकसान

Guatam Budhha Motivational Story In Hindi – गुस्सा करने के नुकसान

एक बार गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे । वे चलते – चलते एक गाँव के पास स्थित एक बगीचे में पहुँचे । बुद्ध के आने की खबर आस – पास के गाँवों में भी पहुँच गई और देखते – ही – देखते उनके दर्शन को हजारों लोग एकत्रित हो गए ।

वे सभी बुद्ध का दर्शन पाकर बेहद प्रसन्न हुए और वे सभी बुद्ध की अमृतवाणी सुनने की आस में वहीं उनके निकट बैठ गए । बुद्ध अपने शिष्यों के साथ मौन बैठे थे ।

शिष्यों के साथ वहाँ बैठे सभी लोग बुद्ध से कुछ सुनने की आस लगाए बैठे थे , परंतु बुद्ध तो अपने आप में ही खोये अभी भी मौन बैठे थे ।

शिष्यों को लगा कि तथागत कहीं अस्वस्थ तो नहीं हैं ? आखिर एक शिष्य ने उनसे पूछ ही लिया- ” तथागत ! आज आप शांत क्यों बैठे हैं ? आपको सुनने की प्रतीक्षा में यहाँ दूर – दूर से आए हजारों लोग बैठे हैं ।

फिर आप मौन क्यों हैं ? क्या हममें से किसी शिष्य से ऐसी गलती हो गई है , जिससे कि आप नाराज हैं ? ” तभी किसी अन्य शिष्य ने पूछा- ” भगवन् ! कहीं आप अस्वस्थ तो नहीं हैं ? ” परंतु बुद्ध अभी भी मौन थे । सच तो यह था कि हर पल आनंद में स्थित रहने वाले बुद्ध न तो नाराज थे और न ही अस्वस्थ ।

वे तो सभा में बैठे हुए हजारों लोगों के चित्त के चित्र को अपने ध्यानस्थ नेत्रों से पलभर में ही देख रहे थे कि सभा में बैठे प्रत्येक व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है ? उसके चित्त की दशा क्या है ? इसलिए वे अपने तरीके से ही लोगों के चित्त की शल्यक्रिया किया करते थे ।

वे अपने तरीके से लोगों की मानसिक उलझनों को दूर करने का प्रयास करते थे । वे लोगों की समस्याओं का बड़े ही व्यावहारिक रूप में समाधान देने का प्रयास करते थे ।

उस समय वे मौन में ही सभा में बैठे किसी व्यक्ति के मन से उठ रही क्रोध की अदृश्य चिनगारी को देख रहे थे ।

वे अभी भी शांत ही बैठे थे कि तभी सभा से कुछ दूरी पर खड़ा एक व्यक्ति जोर से चिल्लाया- ” आज मुझे सभा में बैठने की अनुमति क्यों नहीं दी गई है ? मुझे प्रवेश की अनुमति क्यों नहीं मिली ? ” इसी बीच एक शिष्य ने उसका पक्ष लेते हुए कहा कि उस व्यक्ति को सभा में आने की अनुमति प्रदान की जाए । बुद्ध मौन से बाहर आए और बोले- “ नहीं ! उसे सभा में आने की आज्ञा नहीं दी जा सकती है ।

” यह सुन शिष्यों के साथ वहाँ बैठे सभी लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ । करुणा और प्रेम की प्रतिमूर्ति महात्मा बुद्ध के द्वारा किसी को अनुमति न दिया जाना वास्तव में सबके लिए आश्चर्यजनक था ।

बुद्ध की दृष्टि में तो मानव – मानव में कोई भेद नहीं था । बुद्ध की यह प्रतिक्रिया निश्चित ही सबको विस्मय और आश्चर्य में डालने वाली थी । – ” इस बुद्ध अपने शिष्यों के साथ वहाँ बैठे सभी लोगों के मनोभावों को बखूबी समझ रहे थे । इसलिए बुद्ध ने कहा व्यक्ति के अंदर अदृश्य रूप में क्रोध की ज्वाला तो पहले से ही धधक रही थी , जो अब बाहर प्रकट हो रही है । जैसे – अग्नि अपने संपर्क में आने वाली हर चीज को भस्मीभूत कर देती है ,

वैसे ही क्रोध भी एक प्रकार से अग्नि के समान है , जो क्रोधी व्यक्ति के भीतर से निकलकर आस – पास के लोगों में भी क्रोध की चिनगारी सुलगा देती है । इसलिए क्रोधी व्यक्ति को छूने से कोई भी जल सकता है और अपनी हानि कर सकता है । ”

बुद्ध आगे बोले- ” क्रोध पलभर में ही व्यक्ति की सारी अच्छाई को नष्ट कर सकता है और उससे कुछ भी अनिष्ट करवा सकता है । क्रोध की अग्नि पलभर में ही व्यक्ति के भीतर की करुणा और प्रेम जैसी उच्चतर भावनाओं को सोख लेती है ।

क्रोध , हिंसा का ही प्रकट रूप है । जिस व्यक्ति में क्रोध की अग्नि जल रही है , वह व्यक्ति अहिंसक हो ही नहीं सकता । भला जो स्वयं को अपने क्रोध की चिनगारी से पल – पल जला रहा हो , वह दूसरों के साथ अहिंसक कैसे हो सकता है । इसलिए ऐसे व्यक्ति को सभा से , समूह से , समाज से दूर ही रहना चाहिए । ” सभा में बैठने की अनुमति न देने के कारण क्रोध में जल रहे उस व्यक्ति को अब अपनी गलती का एहसास हो चुका था ।

वह दौड़ता हुआ आया व बुद्ध के चरणों में माथा टेककर बिलखने लगा।प्रेम और करुणा की प्रतिमूर्ति बुद्ध ने उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरा और बोले- ” वत्स ! क्रोध दहकते हुए उस कोयले के समान है , जिसे व्यक्ति दूसरों को जलाने के लिए अपने पास रखे रहता है ; अपने मन में रखे रहता है और उससे हर पल वह स्वयं ही जलता रहता है , इसलिए क्रोध से बाहर निकलो ।

तुम अपने अंदर प्रेम , करुणा और सहिष्णुता के जल को भरकर अपने भीतर जल रही क्रोध की अग्नि को , चिनगारी को सदा सदा के लिए बुझा सकते हो । क्रोध के शांत होते ही , समाप्त होते ही तुम शांति को प्राप्त होगे और तुहें तुहारे अंदर से ही सुख की प्राप्ति होने लगेगी ।

” बुद्ध के उपदेश को सुनकर वह व्यक्ति क्रोध पर विजय प्राप्त करने के संकल्प के साथ वहाँ से चल पड़ा और प्रेम , करुणा की ध्यान – साधना करते – करते एक दिन सचमुच ही क्रोध पर नियंत्रण प्राप्त करने में सफल हो गया ।

अंतिम शब्द

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