होली पर निबंध | Holi Par Nibandh
Holi Par Nibandh : भारतीय त्योहारों में सबसे मदमस्त और प्रफुल्लचित त्योहार होली है । यह त्योहार उस समय मनाया जाता है जब प्रकृति का कण – कण विविध रंगों में रंगायित हो जाता है । इस पर्व को रंगों का पर्व कहा जाता है । व्यक्ति प्रकृति के रंगों में अपने को रंगने हेतु होली पर्व मनाता है । यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है ।
होली से सम्बन्धित अनेक कथाएँ प्रचलित हैं । पहली कथा महाबली दानव हिरण्यकश्यपु , भक्त प्रह्लाद और होलिका से सम्बन्धित है । हिरण्यकश्यपु ने भक्त प्रह्लाद को होलिका की गोद में बैठाकर उसे जलाने का प्रयास किया था । ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई । इस उपलक्ष में होलिका दहन की परम्परा शुरू हुई ।
दूसरी कथा भगवान शंकर की समाधि भंग करने की कोशिश में कामदेव स्वयं जलकर भस्म हो जाना माना जाता है ।
तीसरी कथा कृष्ण द्वारा पूतना – वध से सम्बन्धित है । पूतना के विषयुक्त स्तन को अपने मुँह में लेकर दुग्ध – पान किया । स्तन – पान के साथ ही कृष्ण ने उसके प्राण हर लिए । होली समानता और भाई – चारे का , स्नेह और आत्मीयता का पर्व है ।
इस दिन भारत के सभी हिन्दू बच्चे , बूढ़े तन – मन से रंगीन नजर आते हैं । इस पर्व में हिन्दू के अतिरिक्त भी अन्य धर्म वाले भी शामिल होते देखे जाते हैं । इस दिन लोग ऊँच – नीच , छोटे – बड़े , अमीर – गरीब , शत्रु – मित्र सभी मिलकर आपस में गुलाल मलते और रंग घोलकर एक – दूसरे पर छिड़कते दृष्टिगत होते हैं । इस अवसर पर हँसी – मजाक को कोई बुरा नहीं मानता । लोग टोलियों में इकट्ठा होकर जोगीड़ा और कबीर गीत गाते हैं । कई स्थानों पर ‘ महामूर्ख सम्मेलन ‘ मनाये जाते हैं । ब्रज की होली विश्वविख्यात है । होली अपने लाल रंग के प्रतीक से जन – जन को एक सूत्र में बाँध देती है ।
” उड़त गुलाल लाल भयो अम्बर “
Holi Essay In Hindi | होली पर निबंध
भूमिका
भारत उत्सवों का देश है । होली सबसे अधिक रंगीन और मस्त उत्सव है । इस दिन भारतवर्ष में सभी फक्कड़ता और मस्ती की भाँग में मस्त रहते हैं ।
होली का महत्त्व
होली वाले दिन लोग छोटे – बड़े , ऊँच – नीच , गरीब – अमीर , ग्रामीण – शहरी का भेद भुलाकर एक – दूसरे से गले मिलते हैं तथा परस्पर गुलाल मलते हैं ।
पौराणिक कथा
होली के मूल में हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद और होलिका का प्रसंग आता है । हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मार डालने के लिए होलिका को नियुक्त किया था । होलिका के पास एक ऐसी चादर थी , जिसे ओढ़ने पर व्यक्ति आग के प्रभाव से बच सकता था । होलिका ने उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में ले लिया और अग्नि में कूद पड़ी । वहाँ दैवी चमत्कार हुआ । होलिका आग में जलकर भस्म हो गई , परंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ । तब से लेकर आज तक होलिका दहन की स्मृति में होली का पर्व मनाया जाता है ।
होली की विशेषता
होली का उत्सव दो प्रकार से मनाया जाता है । कुछ रात्रि में लकड़ियाँ , झाड़ – झंखाड़ एकत्र कर उसमें आग लगा देते हैं और समूह में इकट्ठे होकर गीत गाते हैं । आग जलाने की यह प्रथा होलिका दहन की याद दिलाती है । ये लोग रात को आतिशबाजी आदि जलाकर भी अपनी खुशी प्रकट करते हैं । होली मनाने की दूसरी प्रथा आज सारे समाज में प्रचलित है । होली वाले दिन लोग प्रात : काल से दोपहर 12 बजे तक अपने हाथों में लाल , हरे , पीले रंगों का गुलाल लिए हुए परस्पर प्रेमभाव से गले मिलते हैं ।
मनाने की तैयारी
होली एवं ईद दोनों की तैयारी महीने भर चलती है । फाल्गुण के पूरे महीने लोग फाग – राग गाते आनन्द और उल्लास के साथ चौक – चौराहों पर अगजा के लिए धीरे – धीरे लकड़ियों के ढेर लगाते जाते हैं और बाग – बगीचों की बहार की खुशियाँ मनाते हैं । ईद की तैयारी भी रमजान के पूरे महीने चलती है । मुस्लिम लोग पूरे महीने दिनभर बिना कुछ खाए रोजा रखते हैं और शाम के समय इष्ट – मित्रों के साथ चना फल आदि खाते हुए रोजा करते हैं । ईद के दिन पहनने के लिए नए कपड़े सिलवाते हैं ।
अन्तर कथा : Holi Par Nibandh
होली तथा ईद दोनों बुराई के अंत तथा अच्छाई के स्वागत की कथा है । दोनों ही पर्व आपसी सहयोग और मेल – मिलाप को बढ़ावा देते हैं । होली हिरण्यकश्यप के अत्याचार के अन्त के उल्लास में मनाई जाती है जबकि ईद इस्लाम धर्म के भेदभाव को दूर करने के लिए मोहम्मद पैगम्बर साहब के धर्मोपदेश की खुशी में आपसी सहयोग को बढ़ावा देती है ।
लाभ एवं हानि : Holi Essay In Hindi
होली तथा ईद दोनों आनन्द मनाने का पर्व है । लोग आपसी सहयोग तथा भाईचारे की ओर आकर्षित होते हैं तथा ऊँच – नीच , गरीब – अमीर , छोटे – बड़े और शहरी – ग्रामीण का भेद भूलकर एक – दूसरे के गले मिलते हैं और खाते – खिलाते हैं । फिर भी , कुछ लोग रंग में भंग डाल देते हैं और सामाजिक तनाव पैदा कर देते हैं । ऐसे रूढ़िवादी और हुलड़बाज आनन्द का माहौल बदल देते हैं । कुछ लोग नाजायज खर्च भी कर डालते हैं ।
उपसंहार
इस दिन गली – मुहल्लों में ढोल – मजीरे बजते सुनाई देते हैं । कोई नीले – पीले वस्त्र पहने घूमता है , तो कोई जोकर की मुद्रा में मस्त है । बच्चे पानी के रंगों में एक – दूसरे को नहलाने का आनंद लेते हैं । बच्चे पिचकारियों से भी रंग की वर्षा करते दिखाई देते हैं । परिवारों में इस दिन लड़के – लड़कियाँ , बच्चे – बूढ़े तरुण – तरुणियाँ सभी मस्त होते हैं । प्रौढ़ महिलाओं की रंगबाजी बड़ी रोचक बन पड़ती है । इस प्रकार यह उत्सव मस्ती और आनंद से भरपूर है ।