जल नेति क्या है ? क्रिया विधि , लाभ एवं सावधानी

जल नेति क्रिया ( Jal Neti Kriya ) के द्वारा शरीर के शीर्ष प्रदेश सिर ( खोपड़ी ) के क्षेत्र की शुद्धि होती है । नेत्रदृष्टि से जुड़ी नाड़ियाँ भी शुद्ध होती हैं । नाक , कान , गले ( E.N.T ) के रोगों से बचाव होता है ।

सायनस ग्रंथियाँ नाक के अंदर श्लेष्मा पैदा करती हैं । श्लेष्मा को बाहर निकालने में नेति की विभिन्न क्रिया लाभ पहुँचाती है तथा वहाँ की सूक्ष्म नाड़ियों का परिशोधन होता है ।

फलतः नाक , कान , गले , आँख तथा मस्तिष्क की क्रियाविधि निर्बाध गति से चलती है । उन अंगों से जुड़े रोगों – सरदी , जुकाम , एलर्जी , साइनोसायटिस , ब्रोंकाइटिस , सिरदरद , नेत्रदृष्टि की कमजोरी आदि से सहज मुक्ति मिलती है तथा स्मरण क्षमता का विकास होता है ।

मस्तिष्क में शांति की अनुभूति होती है । तनाव की निवृत्ति होती है । प्राणवायु के आवागमन में कोई बाधा नहीं होती है , जिससे फेफड़े सशक्त रहते हैं । रक्तशुद्धि होती है तथा जीवनीशक्ति बढ़ती है ।

नेति के अन्य प्रकार भी हैं । जैसे – रबरनेति , सूत्र नेति , घृतनेति , दुग्धनेति , तेलनेति , मूत्रनेति आदि , परंतु इन सबमें जलनेति सर्वश्रेष्ठ एवं निरापद है । रबरनेति के लिए 4 नं . का कैथेटर प्रयोग में लाया जाता है ।

जलनेति क्या है ? jalneti meaning In Hindi

यह नासिका द्वारा एक विशेष टोंटीदार लोटे ( यंत्र ) से नासिका में जल डालने की क्रिया है । इसमें जल मुँह में भी जा सकता है या एक नासिका छिद्र से जल डालकर दूसरी तरफ के नासिका छिद्र से जल निकालने की क्रिया है । यह थोड़े समय के प्रशिक्षण एवं अभ्यास से ही सीख सकने वाली सरल क्रिया है ।

जल नेति की क्रिया स्थिति

क्रिया की स्थिति – जलनेति के लिए पंजों के बल उकडू बैठकर या खड़े होकर आगे की तरफ झुककर यह क्रिया कर सकते हैं । इसमें सिर को तिरछा घुमाकर रखते हैं , जिससे पानी का निकास दूसरी तरफ के नासिका छिद्र से सहज हो सके ।

जलनेति की विधि – Jalneti steps

कुनकुना पानी लें , जो शरीर के तापमान के बराबर हो । थोड़ा नमक पानी में घोल दें । नमकीन पानी से जलनेति के पीछे वैज्ञानिक आधार यह है कि कोमल , अतिसंवेदनशील आंतरिक त्वचा की झिल्लियों में नमक के पानी का अवशोषण आसानी से नहीं हो पाता ।

वैसे साधारण पानी से भी जलनेति की क्रिया करने में कोई हर्ज नहीं है । नमकीनयुक्त जल नेति के लोटे में भर दें तथा खड़े होकर या उकड़ बैठकर सिर को तिरछा घुमाकर रखें एवं लोटे की टोंटी को एक तरफ के नासिका छिद्र में फँसाकर धीरे – धीरे जल नासिका छिद्र में जाने दें । यह ध्यान रहे कि जल उसी नासिका छिद्र से बाहर तो नहीं गिर रहा है ।

सिर को एक तरफ झुकाएँ तथा मुँह को खोलकर रखें । मुँह से ही श्वास लें एवं मुँह से ही श्वास छोड़ते रहें । नेतिक्रिया में एक नासिका छिद्र से पानी जाता है तथा दूसरी ओर के नासिका छिद्र से जल बाहर निकलता है । अतः श्वसन की क्रिया मुँह से चलाना जरूरी हो जाता है ।

नेति करते समय श्वास नासिका से नहीं लेना है । यह एक अनिवार्य नियम है । पानी 15-20 सेकंड तक एक नासिका छिद्र से बहने दें तत्पश्चात नेति के लोटे को अलग रख दें तथा एक तरफ के नासारंध्र को बंद कर जोर से श्वास फेंकें , जिससे बचा हुआ जल बाहर निकल जाए । यही क्रिया दूसरी तरफ के नासिका छिद्र को बंद करके करें , इससे पानी बाहर निकल जाएगा ।

अब दूसरी ओर के नासिका छिद्र से जलनेति कीजिए । दोनों तरफ के नासिका छिद्रों से जलनेति कर लेने के बाद सीधे खड़े होकर आगे झुककर पहले एक तरफ के नासिका छिद्र को अँगूठे से बंद कर दूसरी ओर से श्वास खींचे फिर जोर से श्वास बाहर निकालें , यही क्रिया दूसरी तरफ के नासिका छिद्र को अगूठे से बंद कर करें । इसके पश्चात भस्त्रिका प्राणायाम करें , जिससे जल के सभी कण अंदर से बाहर निकल जाएँ ।

जल नेति का समय

नेति के लिए सर्वोत्तम समय प्रातःकाल होता है , परंतु आवश्यक होने पर दिन में दो बार भी कर सकते हैं ।

जलनेति की आवश्यक सावधानियाँ

  1. पानी अधिक गरम नहीं होना चाहिए ।
  2. नकसीर ( नासारक्त स्राव ) की बीमारी हो तो विशेषज्ञ की देख – रेख में ही करें । ऐसे रोग में गरम जल की अपेक्षा साधारण ठंढे जल का इस्तेमाल करना पड़ता है ।
  3. नमक अच्छी तरह घुला होना चाहिए ।
  4. प्रारंभिक अभ्यासी को नाक में थोड़ी जलन होगी , परंतु यह अभ्यास नित्य करेंगे , तो जलन बंद हो जाएगी ।

जलनेति क्रिया लाभ – Jalneti Benefits

  1. प्रदूषण के वातावरण में रहने वालों के नासिका में पहले से जमे कण बाहर निकलते हैं ।
  2. साइनोसाइटिस , ब्रोंकाइटिस की उत्पत्ति को रोकता है ।
  3. दमा तथा विभिन्न प्रकार की एलर्जी रोगों से बचाव और निवारण भी होता है ।
  4. श्लेष्मा ढीला होकर बाहर निकलता है ।
  5. श्लेष्मा निकलने के कारण नासिका से श्वसन के आवागमन में बाधा नहीं होती । अधिक मात्रा में शुद्ध ऑक्सीजन फेफड़ों को मिलने से रक्त की शुद्धि होती है ।
  6. आँखों , कानों के कष्ट भी नेति से ठीक होते हैं ।
  7. धूल एवं धुआँ के कण चिपके रहते हैं , नाड़ियों के कार्य में बाधा डालते हैं , वे बाहर निकल जाते हैं , जिससे नाड़ीबल बढ़ता है ।

अंतिम शब्द

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