
आज के इस लेख में हम शीशम के पत्तों के फायदे , शीशम के फायदे ,शीशम का पेड़ in english , शीशम के पत्ते धातु रोग , शीशम पत्ते खाने के फायदे के बारे में जानेंगे।
शीशम की फर्नीचर इत्यादि में उपयोगिता होती है , परंतु औषधीय दृष्टि से भी शीशम की उपयोगिता कम नहीं है । शीशम की तीन प्रजातियाँ होती हैं काली , सफेद और पीली । हमारे भारत देश में यह वृक्ष सर्वत्र होता है । दक्षिण भारत में कम होता है । सड़क के किनारे इसके वृक्ष प्रायः मिल जाते हैं ।
शीशम ( Shisham ) के प्रकार – sheesham types
प्रयोज्य अंग – शीशम की छाल , पत्ते , जड़ । मात्रा – क्वाथ 5 से 10 तोला । कल्क 1 से 3 ग्राम , स्वरस ( पत्ते का रस ) 1 से 4 तोला। सफेद शीशम – कडुआ , शीतल और पित्त एवं जलन दूर करता है ।
भूरे रंग का शीशम – कडुआ , शीतल , वात , पित्त , ज्वर , उलटी और हिचकी दूर करता है । तीनों प्रकार के शीशम बलकारक , रुचि पैदा करने वाले , सूजन , खाज – खुजली , पित्त और दाह को शांत करते हैं ।
शीशम खुजली , शरीर की जलन तथा उपदंश , पेट के रोग , पेशाब की जलन को शांत करने वाला होता है । इसकी जड़ संकोचक होती है । इसके पत्तों का काढ़ा सुजाक की तीव्रावस्था में लाभप्रद होता है । इसके पत्तों का लुआब तिल के तेल में मिलाकर त्वचा पर लगाने से फटी त्वचा ठीक होती है ।
शीशम के उपयोग – use of Sheesham
रक्त प्रदर एवं श्वेत प्रदर में – शीशम के 10-12 पत्तों को पीसकर 10 ग्राम मिसरी , 200 ग्राम पानी के साथ 21 दिनों तक सेवन कराने से लाभ होता है । अधिक ठंढ के दिन हों , तो 1-2 कालीमिर्च पीसकर इस औषधि में मिलाकर सेवन कराना चाहिए । आवश्यक पथ्य – परहेज का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए । गरम मसाले , तले खाद्य , चीनी , मैदा , बेसन , चाय , काफी आदि सेवन न करें । फल एवं हरी सब्जियों का सेवन करना चाहिए । ०
सायटिका में – शीशम की छाल 40 ग्राम कूट पीसकर 250 ग्राम पानी में उबालें ; जब एक – चौथाई पानी शेष रहे ; तब छानकर उसे पुनः चूल्हे पर रखकर उबालकर गाढ़ा कर लें । ठंढा होने पर इसको घृतयुक्त दूध के साथ 10 ग्राम मात्रा में प्रतिदिन 3 बार 21 दिनों तक सेवन करने से चमत्कारी । लाभ होता है । सायटिका के रोगी को खट्टे एवं वातकारक गरिष्ठ ( पचने में कठिन ) पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए । तेल – मालिश भी नियमित करना चाहिए । 10 ग्राम केस्ट्रॉयल रात को सोते समय गरम पानी के साथ पिएँ
आँखों के दरद में – शीशम के पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर अंजन करने से लाभ होता है ।
रक्त विकार में – शीशम की लकड़ी के 500 ग्राम बुरादा को डेढ़ किलो पानी में 8 घंटा भिगोकर रखें तत्पश्चात उबाल लें ; जब पानी आधा शेष रहे ; तब छानकर उसमें देशी खाँड़ या बूरा मिलाकर शरबत की तरह नित्य पीने से रक्त शोधित होता है । यह प्रयोग 40 दिनों तक नियमित करना चाहिए । इस प्रयोग से रक्त विकार , बलगमयुक्त खाँसी तथा अतिरजस्राव एवं खूनी बवासीर में भी लाभ होता है ।
चर्म रोगों में – शीशम का तेल कृमिनाशक होता है । शीशम का तेल प्रायः सभी चर्म रोगों में त्वचा पर लगाने से लाभ करता है ।
फोड़ा – फुसी में- शीशम के 10-15 पत्तों का काढ़ा बनाकर सुबह – शाम 21 दिनों तक पीने से लाभ होता है । ०
रजोरोध ( कष्टार्तव ) में – 10-15 शीशम के पत्तों का काढ़ा 50 ग्राम मात्रा में सुबह – शाम पिलाने से कष्टप्रद मासिकधर्म में लाभ होता है ।
स्तनों की सूजन में – शीशम के पत्तों को गरम कर स्तनों पर बाँधने से तथा शीशम के पत्तों की भाप देने से स्तनों की सूजन मिटती है ।
कुष्ठ रोग में – शीशम की लकड़ी का बुरादा 10 ग्राम लेकर 125 ग्राम पानी में उबालें । आधा पानी शेष रहने पर छानकर ठंढा होने पर सेवन कराएँ । सुबह – शाम नित्य सेवन कराने से लाभ होता है ।
सुजाक में – शीशम के पत्तों का काढ़ा बनाकर नित्य 2 बार सेवन कराने से सुजाक की अत्यंत तीव्र पीड़ा दूर होती है । मिर्च एवं तले खाद्य तथा चाय – काफी से परहेज रखें । दूध में पानी मिलाकर मिसरी के साथ शरबत बनाकर दिन में 3 बार सेवन कराएँ ।
मूत्रकृच्छ्र में – नित्य 2-3 बार शीशम के पत्तों का काढ़ा 50 ग्राम पीने से लाभ होता है ।
उलटी में – शीशम के पत्तों का क्वाथ पिलाने से उलटी में आराम होता है ।
अंतिम शब्द
इस लेख में आपको शीशम के उपयोग व फायदे – Sheesham Benefits In Hindi इसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारिया मिली हमें यकीन है की आप सभी पाठको को यह काफी पसंद होगा
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Update on May 2, 2021 @ 3:24 pm
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